सरहद पे चली जब गोली
तब माँ धरती से बोली
मेरा लाल है तेरे हवाले
कहीं लग ना जाये गोली
रस्ता देख रहें हैं उसका
व्याकुल से दो नैना
पिछले बरस ही लाई थी
मै नई दुल्हन का गौना
सूनी ना होने देना
दुल्हन की मेरे कलाई
जीते जी मर जाऊँगी
अगर बेवा नजर वो आई
सरहद पे चली जब गोली .....
नन्ही बिटिया खो ना दे
कहीं बाबुल का आधार
एक बार भी कर ना पाया
बेटा उसको प्यार
बिन बाबुल के पा न सकेगी
चाहत और दुलार
नन्ही सी उस जान पे
कर देना इतना उपकार
सरहद पे चली जब गोली .....
खून से लथपथ लाल मेरा
जब सपनों में है आता
सीना छलनी हो जाता है
जब वो मुझे बुलाता
होती रहती है अब घर में
अश्कों की बरसात
नींद नही आती अब हमको
सारी सारी रात
सरहद पे चली जब गोली ....
धरती का जवाब :-
वीर शहीदों की लाशों पर
कितने नीर बहाऊँ
कहाँ छुपाऊँ लालों को
मै खुद ही समझ ना पाऊँ
मेरी खातिर लड़ते है
मुझपर ही चला कर गोली
तुम सब मेरे लाल हो
यूँ ना खेलो खून की होली
मिलजुलकर सब साथ रहो
चाहे भले अलग हो बोली
कोई हरा न पायेगा
अगर बन जाओ एक टोली
- नीतू ठाकुर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (11-08-2018) को "धार्मिक आस्था के नाम पर अराजकता" (चर्चा अंक-3060) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय बहुत बहुत शुक्रिया आप का मेरी रचना को स्थान देने के लिए । आशिर्वाद बनाये रखें।
हटाएंवाह!!नीतू जी ,बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति । वीर शहीदों को शतशत् नमन ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार शुभा जी।
हटाएंआप की प्रतिक्रिया हमेशा ही हौसला बढाती है।
यूँ ही आशीष बनाये रखें।
नीतू सखी लाजवाब,सचमुच अद्भुत भाव भरे हैं आपने इस रचना मे हृदय द्रवित है आंखे नम और एक दुआ निकलती हर घडी कि इन सपूतों की रक्षा करना हमेशा हे परमेश्वर।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सखी
हटाएंबहुत अच्छी प्रतिक्रिया .... स्नेह बनाये रखें।
सार्थक रचना ।।।
जवाब देंहटाएंचाहता तो कोई नहि है ली सीमा पे किसी का बलिदान हो क्योंकि
मरने वाला बेटा होता बाई भाई होता है पिता होता है पर ... कहाँ समझ
पाती हैं गोलियाँ ये सब ..।
बहुत ही अच्छी रचना है ...
बहुत बहुत आभार आदरणीय ।
हटाएंआप की प्रतिक्रिया पढ़कर अपार हर्ष हुआ।
बहुत ह्रदय स्पर्शी रचना नीतू जी ... शहीदों को सादर नमन
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 13 अगस्त 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा नीतु की यदि कोई गोली ही न चलाएं,सब मिलजुल कर रहे तो किसी माँ की गोद सुनी नहीं होगी।
जवाब देंहटाएंदेशभक्ति से ओतप्रोत रचना दिल भर आया पढ़ कर
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण प्रस्तुति। काश ! हमेशा शांति का माहौल रहता और किसी भी जवान को शहीद ना होना पड़ता।
जवाब देंहटाएंप्रिय नीतू -- आपकी ये रचना मैंने उसी दिन पढ़ ली थी | बहुत भावुक कर देती है मुझे | सैनिक की माँ का संवाद बहुत ही मार्मिक और दिल को छूने वाला है | ईश्वर करे सब सैनिकों सलामत रहें और ख़ुशी से अपनों के लिए सलामत लौट कर आयें | माँ धरती को उनके लहू से कभी लाल ना होना पड़े |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....मन भाव विभोर हो गया ।
जवाब देंहटाएं