जरा तहज़ीब सिखलाये , कोई बेखौफ लहरों को
जो अक्सर तोड आती हैं , कड़े सागर के पहरों को
सुनाती हो भला क्यों यूँ , प्रलय का गीत बहरों को
तुम्हारे खेल में मिटते हुए , देखा है शहरों को
मिटाकर क्या मिला तुमको , नही कुछ साथ ले जाती
भयानक याद बनती हो ,जो बिछड़ों को नही भाती
तेरी नादानियों से सूर्य भी , बेनूर लगता है
अंधेरी रात में चंदा , शर्म से चूर लगता है
क्षितिज के पार देखो , चांदनी आंसू बहाती है
तेरा साया जहाँ पड़ता , सिसकती भोर आती है
ये टूटे आशियाँ आँखों में , बिखरे ख्वाब बाकी हैं
दिए सौगात में आंसू , बता तू कैसा साकी है
- नीतू ठाकुर
तेरी नादानियों से सूर्य भी बेनूर लगता है
जवाब देंहटाएंअंधेरी रात में चंदा शर्म से चूर लगता है वाह बहुत सुंदर रचना 👌👌
बहुत बहुत आभार।
हटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया।
हटाएंबहुत सुन्दर ...बहुत लाजवाब...
जवाब देंहटाएंवाह!!!
मिटाकर क्या मिला तुमको,नहीं कुछ साथ ले जाती
भयानक याद बनती हो जो बिछड़ो को नहीं भाती....
आप को रचना पसंद आई शुक्रिया।
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.9.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3093 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बहुत आभार।
हटाएंजरा तहज़ीब सिखलाये , कोई बेखौफ लहरों को
जवाब देंहटाएंजो अक्सर तोड आती हैं , कड़े सागर के पहरों को
सुनाती हो भला क्यों यूँ , प्रलय का गीत बहरों को
तुम्हारे खेल में मिटते हुए , देखा है शहरों को...
बहुत बहुत शानदार। बेमिसाल आदरणीया नीतू जी।
आप को रचना पसंद आई लेखन सार्थक हुआ.... शुक्रिया।
हटाएंखूबसूरत अशआर
जवाब देंहटाएंकोमल अहसास से सजी सुन्दर रचना
ह्रदय से आभार।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १७ सितंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत शुक्रिया।
हटाएंbehtareen rachna...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार।
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति। पहला और दूसरा बंध तो बेहद प्रभावपूर्ण है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ह्रदय से।
हटाएंइन बेखौफ लहरों को न जाने किन का साथ मिल जाता है और ये उफन आती हैं ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब शेर हैं सभी .... बेमिसाल ...
बता तू कैसा साकी है..
जवाब देंहटाएंशानदार लाजवाब
बहुत सुंदर रचना, नीतु।
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