नवगीत नीतू ठाकुर 'विदुषी'
मुखड़ा/पूरक पंक्ति~14/14
अंतरा~14/14
श्वास है अवरुद्ध मन से
बह रही है अश्रु धारा
मिट रहा आँखों का काजल
छोड़ पलकों का किनारा
प्रीत की यह रीत कैसी
जो ह्रदय को पीर देती
चैन छीने जो नयन के
स्वप्न भी सब छीन लेती
कुछ व्यथित जब सिंधु देखा
फिर नदी देती सहारा
श्वास है अवरुद्ध मन से
बह रही है अश्रु धारा
यूँ सुगंधित तन धरा का
देख अंबर झूमता है
ओस की बूंदे टपकती
भृंग कलियाँ चूमता है
देख एकाकी कलानिधि
हँस रहा है शुक्र तारा
श्वास है अवरुद्ध मन से
बह रही है अश्रु धारा
जल रहे हैं दीप बाती
घोर छाया तम घनेरा
सिसकियों में ढूंढता है
गीत कोई आज मेरा
जीत कर है खिन्न ये मन
हार से भी आज हारा
श्वास है अवरुद्ध मन से
बह रही है अश्रु धारा
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
बहुत खूबसूरत नवगीत।
जवाब देंहटाएंप्रीत की ये रीत कैसी
जवाब देंहटाएंजो हृदय को पीर देतीं
बेहद प्यारी ,भावपूर्ण रचना ,सादर नमन आपको