नवगीत : नीतू ठाकुर 'विदुषी'
मुखड़ा पूरक पंक्ति 16/14
अंतरा 16/14
विरह वेदना की लहरों में
जीवन की नदियां बहती
सावन की वह मंद फुहारें
तन-मन स्वाहा कर दहती
सूनी हैं सपनों की गलियाँ
अपनों का आभास नही
इतनी वीरानी है छाई
मन भी मन के पास नही
फिर भी आशाएं जीवित है
दर पर ये आँखे रहती
विरह वेदना की लहरों में
जीवन की नदियां बहती
कितनी बार जलाएं दीपक
इन अँधियारी गलियों में
पतझड़ का मौसम छाया है
भ्रमर नही है कलियों में
मेरे साथ धरा ये रोती
सुख दुख अपने है कहती
विरह वेदना की लहरों में
जीवन की नदियां बहती
हार चुका तन साँसे लेकर
अब विश्राम जरूरी है
प्राण पखेरू उड़ना चाहें
कैद बनी मजबूरी है
तन है घायल मन आहत है
बड़ी यातना है सहती
विरह वेदना की लहरों में
जीवन की नदियां बहती
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
सफल सृजनात्मक सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (29-01-2020) को "तान वीणा की माता सुना दीजिए" (चर्चा अंक - 3595) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर और मार्मिक अभिव्यक्ति नीतू जी ,सादर
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