कह मुकरी
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
चिकना तन और पतली काया
सारे जग का मन भरमाया
नूतन रोज दिखाता स्टाइल
हे सखि साजन? ना मोबाइल
सबके मन में खौफ बनाता
अच्छे खासों को जो समझाता
पीट पीट कर करता ठंडा
हे सखि साजन? ना सखि डंडा
जो भूकंपी दाड़ बजाता
गुस्सा जिसको ऐसा आता
कितनो को तो मार पछाड़ा
हे सखि दानव? ना सखि जाड़ा
नही किसी से जो है डरता
हर कोई उससे है मरता
जिसका रूप करे बेहाल
हे सखी सर्प ? ना सखी काल
रातों का जो साथी रहता
साथ रहूंगा जो यूँ कहता
दुःख में जो देता है संबल
हे सखि साजन? ना सखि कम्बल
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
क्या बात है..नीतू जी
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
बहुत सुंदर कहमुक़री ,
जवाब देंहटाएंवाहहहह बेहद खूबसूरत कह मुकरी सखी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कह मुकरी
जवाब देंहटाएंलाजवाब, प्रणाम।
जवाब देंहटाएंवाह 👌👌
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 27 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह!!नीतू जी ,बहुत खूब!!!
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(28-01-2020 ) को " चालीस लाख कदम "(चर्चा अंक - 3594) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
...
कामिनी सिन्हा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कहमुकरी....
बहुत सुंदर कहमुक़री
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर! अमीर खुसरो जी की मोहक विधा पर कलम चलाना और इतना शानदार सृजन करना,वाह! हृदय तल से बधाई।
जवाब देंहटाएंएक विलुप्त होती विधा को नवजीवन देने का सार्थक प्रणाम प्रिय नीतु। सस्नेह शुभकामनायें। 🌹🌹🌹🌹🌹
जवाब देंहटाएंस्वर व्यंजन की ये गलबाहीं
जवाब देंहटाएंशब्द-शब्द में रस भर लाहीं।
मन में कैसी उठाये हुक री,
के सखी साजन!ना सखी, मुकरी!!!
वाह आदरणीया अति सुन्दर कहमुकरी 👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंअतिसुंदर रचना
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