मंगलवार, 18 फ़रवरी 2020

धरा का श्रृंगार...नीतू ठाकुर 'विदुषी'

नवगीत   
नीतू ठाकुर 'विदुषी'


मुखड़ा/पूरक पंक्ति 15/14
अन्तरा 14/14 

बादलों ने ली अँगड़ाई, 
खिलखिलाई ये धरा भी। 
ताकती अपलक अम्बर को, 
गुनगुनाई ये धरा भी।

1
चंद्र तिलक माथे नभके,
धरती के मन अति भाये।
मेघ जहाँ बन अवगुंठन,
धरती को आज सताये।
आँसू ओस बने बिखरे,
छटपटाई ये धरा भी।
बादलों ने ली अंगड़ाई, 
खिलखिलाई ये धरा भी।

महके पात मेंहदी के,
ये हवा कुछ घोलती है।
और महावर नभ हाथों, 
वो यहाँ कुछ बोलती है।
ले पीताम्बर पुष्प पुलकित, 
लहलहाई ये धरा भी।
बादलों ने ली अंगड़ाई, 
खिलखिलाई ये धरा भी।

3
चाँदनी बिखरी गगन में,
साँझ सिंदूरी सजी है।
झूमती शीतल हवाएँ,
बाँसुरी जैसे बजी है।
जुगनुओं की रौशनी में,
जगमगाई ये धरा भी।
बादलों ने ली अंगड़ाई, 
खिलखिलाई ये धरा भी।

4
कोकिला के स्वर जो गूँजें,
रातरानी मुस्कुराई।
झूमता मन का मयूरा,
दामिनी जो कड़कड़ाई।
डोलती हर पुष्प डाली,
बुदबुदाई ये धरा भी।
बादलों ने ली अंगड़ाई, 
खिलखिलाई ये धरा भी।

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर 👌👌👌 प्राकृतिक बिम्ब के माध्यम से बात वहाँ तक अच्छे से पहुँच सकती है जहाँ सपाट कथन में नहीं पहुँच सकती। बहुत सुंदर अलंकृत झंकृत नवगीत 👌👌👌 बधाई 💐💐💐

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  2. बहुत सुन्दर सृजन, नीतु दी।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 19 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.02.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3617 में दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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  5. वाह!नीतू जी ,बहुत खूबसूरत गीत!👌

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  6. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन ,सादर नमन

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  7. बहुत ही सुंदर ,लाज़बाब सृजन ,सादर नमन

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  8. वाह बेहद खूबसूरत नवगीत सखी👌👌

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