नवगीत
बेबसी का दर्द
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
मापनी~ 16/14
चिड़िया आग दहकती में क्यों
आज स्वयं को झोंक रही।
लड़ती रहती छुरियों से जो
जब गर्दन पर नोंक रही
1
देख रहे सब मौन तमाशा,
ध्यान किसे है गैरों का।
जहां गुजारा पूरा जीवन,
शहर लगे वो औरों का।
पालक पालें लहू पिलाकर,
संताने बन जोंक रही।
चिड़िया आग दहकती में क्यों,
आज स्वयं को झोंक रही।
2
वृक्ष हमें बस छाया बांटे,
कर्म सिखाते उपकारी।
आज हरी सी शाखाओं में,
चिड़िया स्वाहा तैयारी।
दीमक चाट रही जिस तन को
छलनी करती चोंक रही।
चिड़िया आग दहकती में क्यों,
आज स्वयं को झोंक रही।
3
कल्पवृक्ष जब जलते देखे,
अंदर तक वह काँप उठी।
बचा नहीं है कुछ भी बाकी,
हालत अपनी भाँप उठी।
मन्नत चुनरी राख बनी सब,
शेष अभी तक टोंक रही।
चिड़िया आग दहकती में क्यों,
आज स्वयं को झोंक रही।
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
पाखी के घर घरौंदे वृक्ष के साथ जल जाने के पश्चात उसके अंतः करण की पीर का उत्तम अवलोकन , श्रेष्ठ भावाभिव्यक्ति अद्भुत शिल्प, लय और शब्द चयन जो रचना के आकर्षण का विषय हैं 😍
जवाब देंहटाएं👌👌👌बधाई 💐💐💐
बहुत बहुत आभार आदरणीय आपको रचना पसंद आई लेखन सार्थक हुआ 🙏🙏🙏
हटाएंनिम्न दो लिंकों पर एक सी ही पोस्ट है और दोनों ने अपने-अपने नाम से पोस्ट की हैं। पता नहीं कि इस पोस्ट का वास्तविक रचयिता कौऩ है? नीतू ठाकुर या संजय कौशिक विज्ञात?
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (04-03-2020) को "रंगारंग होली उत्सव 2020" (चर्चा अंक-3630) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार आदरणीय मेरी रचना को स्थान देने के लिए 🙏🙏🙏 शायद गलती से जल्दबाजी में आपने विज्ञात सर के नाम से गलत रचना प्रेषित कर दी है 🙏
हटाएंनवगीत
लाचारी
संजय कौशिक 'विज्ञात'
मापनी~16/14
चिड़िया आग दहकती में क्यों
आज स्वयं को झोंक रही।
जलते दिखते वृक्ष घौंसले,
कितनी कुतिया भौंक रही।
उनकी रचना यह है 🙏🙏🙏 कृपया नीचे दिए गए लिंक को उनकी रचना के साथ जोड़ें 🙏🙏🙏 सर द्वारा दी गई पंक्ति पर हमने सृजन किया है पंक्ति उन्ही की है ...वो विज्ञात नवगीत माला में नवगीत लिखना सिखाते है 🙏🙏🙏
http://vigyatkikalam55.blogspot.com/2020/03/blog-post_72.html
जी अब सुधघार कर दिया है।
हटाएंविज्ञात जी से बात हो गयी और सन्देश समाप्त हो गया।
जिस तन बीती वो ही जाने ..बहुत खूबसूरती से उकेरा है आपने दर्द को👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंपालक पालें लहू पिलाकर संतानें बन जोंक रही..वर्तमान परिस्थितियों का यथार्थ चित्रण बहुत बहुत बधाई 💐💐💐💐
शुक्रिया पूजा जी 🙏🙏🙏
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनिता जी 🙏🙏🙏
हटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय 🙏🙏🙏
हटाएंबहुत ही सुंदर सृजन सखी
जवाब देंहटाएंसादर
शुक्रिया अनिता जी 🙏🙏🙏
हटाएंलाजवाब नवगीत
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी
वाह!!!
धन्यवाद सुधा जी 🙏🙏🙏
हटाएंनिःशब्द करती रचना👏👏👏👏👌👌👌👌👌
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