सोमवार, 30 मार्च 2020

एक गुलाब.... नीतू ठाकुर 'विदुषी'

नवगीत
एक गुलाब
नीतू ठाकुर 'विदुषी'

स्थाई / मुखड़ा ~~ 16/14 
अंतरा ~~16/16

एक गुलाब ढूंढ कर लाया,
कहाँ गई वो नहीं मिली।
तुझ बिन सावन लागे पतझड़,
मन की बगिया नही खिली।

1
स्मृतियां बादल बन कर छाई,
ढूंढ रही तुझको तन्हाई।
गिरती बूंदे पूछ रही हैं,
तेरी प्रिये नहीं क्यों आई।
भोर बनी मावस की रातें,
देह जलाती हवा हिली।

2
चुभते हैं अब पुष्प हॄदय में,
जो डाली पर डोल रहे हैं।
कोयलिया की कूक सुरीली
स्वर कर्णों को छोल रहे है ।
बाँसुरिया निष्प्राण पड़ी है,
आज धरा से नही झिली।

3
बहुत हँसे सब कष्ट हमी पर,
एक पता फिर पूछे उसका।
स्मृति अन्तस् में बना ठिकाना,
पीर नाम है दाबे जिसका।
फटी हुई ये दहकी धड़कन, 
और हृदय में गई सिली ।

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब नीतू जी। आपके बिंब निसंदेह छूते हैं.बधाई

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  2. बहुत हंसे सब कष्ट हमीं पर
    वाह सुंदर सृजन की बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूब नीतू जी। आपके बिंब निसंदेह छूते हैं.बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!!!
    कमाल का नवगीत
    बहुत ही लाजवाब।

    जवाब देंहटाएं

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