नवगीत
एक गुलाब
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
स्थाई / मुखड़ा ~~ 16/14
अंतरा ~~16/16
एक गुलाब ढूंढ कर लाया,
कहाँ गई वो नहीं मिली।
तुझ बिन सावन लागे पतझड़,
मन की बगिया नही खिली।
1
स्मृतियां बादल बन कर छाई,
ढूंढ रही तुझको तन्हाई।
गिरती बूंदे पूछ रही हैं,
तेरी प्रिये नहीं क्यों आई।
भोर बनी मावस की रातें,
देह जलाती हवा हिली।
2
चुभते हैं अब पुष्प हॄदय में,
जो डाली पर डोल रहे हैं।
कोयलिया की कूक सुरीली
स्वर कर्णों को छोल रहे है ।
बाँसुरिया निष्प्राण पड़ी है,
आज धरा से नही झिली।
3
बहुत हँसे सब कष्ट हमी पर,
एक पता फिर पूछे उसका।
स्मृति अन्तस् में बना ठिकाना,
पीर नाम है दाबे जिसका।
फटी हुई ये दहकी धड़कन,
और हृदय में गई सिली ।
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
बहुत खूब नीतू जी। आपके बिंब निसंदेह छूते हैं.बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत हंसे सब कष्ट हमीं पर
जवाब देंहटाएंवाह सुंदर सृजन की बधाई
बहुत खूब नीतू जी। आपके बिंब निसंदेह छूते हैं.बधाई
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंकमाल का नवगीत
बहुत ही लाजवाब।