शनिवार, 18 अप्रैल 2020

रेल जैसी जिंदगी : नीतू ठाकुर 'विदुषी'

नवगीत
रेल जैसी जिंदगी
नीतू ठाकुर 'विदुषी'

मापनी 14/14

और अन्तस् मौन चीखे
धड़धड़ाहट शोर आगे
रेल जैसी ज़िंदगी ये
पटरियों के संग भागे

1
कल्पनाओं से भरा है
मिथ्य यह संसार देखा
बंधनों में बांधती है
जीवितों को भाग्य रेखा
व्याधियाँ हँसने लगी हैं
सो रहे दिन रात जागे।

उलझनें सुलझा रहा मन
साँस का है खेल सारा
कर्म की तलवार लेकर
प्रज्ञ बदले काल धारा
मोह में लिपटे हुए है
नेह के नाजुक ये धागे

3
ज़िंदगी के रूप का जब
भाव हैं श्रृंगार करते
सुख दुखों के मोतियों को
एक दोना देख भरते
बोलती सी बाँसुरी से
लेखनी स्वर आज त्यागे

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

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