राजपुताना चालीसा
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
*हमारे राजपूत पूर्वज जिन्होंने इजरायल की स्वतंत्रता के लिए युद्ध कौशल दिखा कर अपने प्राणों का बलिदान देकर भी इजरायल को स्वतंत्र करा कर दम लिया मुझे गर्व होता है अपने पूर्वजों पर जिनके यश का डंका भारत ही नहीं भारत के बाहर भी बजता है शहीद हुए राजपूत सैनिकों को हृदय से श्रद्धांजलि ....*
*राजपुताना चालीसा*
चीख रहा है मृत पृष्ठों से,
वीरों का पावन इतिहास।
राजपुताना के साहस बिन,
इजराइल बन जाता दास।।
नाम नही है गाथाओं में
कैसा निर्मम अत्याचार।
अपने वीरों की गिनती में
देश हुआ कैसे लाचार।।
लोरी गाकर आज सुलाती,
धरती माता अपने वीर।
हँसते हँसते झेल गए जो,
उसपर उठते सारे तीर।।
इजरायल के मृत प्राणों में,
जिसने फूँके अपने श्वास।
याद करो आओ सब मिलके,
अपने वीरों का इतिहास।।
इजरायल को मुक्त कराये,
राजपुताना के सरदार।
धक-धक रिपु की छाती धड़के,
निर्मम इनके तेज प्रहार।।
अनजानी गलियों में कैसे,
भटके होंगे इतने वीर।
चहुँ दिश से जब घेर रहे थे,
मारक बनते घातक तीर।।
धरती अम्बर एक हुए से,
पीस रहे थे बन के पाट।
भारत माँ के वीर सिपाही,
उतरे जब इजराइल घाट।।
आग उगलते अम्बर देखा,
बंजर सी धरती लाचार।
कौन सजता इन वीरों की,
गर्दन में फूलों का हार।।
सूख रहे थे तृण के जैसे,
जल बिन उखड़ी जाती श्वास।
पर अंतस में भरा हुआ था,
वीरों का खुद पर विश्वास।।
शत्रु खड़े थे जाल बिछाये,
उन्हें नहीं था इसका माप।
जिनको आज फँसाने निकले,
वो निकलेंगे इनके बाप।।
भान उन्हें था कर्तव्यों का,
हिय में धरती का अभिमान।
अपने साथ बचा सकते हैं,
इस धरती का भी सम्मान।।
दिखता सारा देश अपरचित,
जैसे दूजे ग्रह के जीव।
जल जीवन सारा परिवर्तित
तोड़ें कैसे अरि की नीव।।
दोनों हाथ पसरे ताके
वृद्ध सरीखा वो रणक्षेत्र।
चिंगारी सी दहक रही थी,
रक्तिम से थे सारे नेत्र।।
काँप रही थी मारुत भय से,
मरुथल जैसा लगता भाग।
सन्नाटा पसरा था जैसे,
धड़ पर नाचें अगणित नाग।।
बाज बने टूटे सेना पर,
नोची आतें तोड़े हाड़।
बौछारें होती रक़्तों की,
डरके छुपते लंबे ताड़।।
तोपें निकली दुल्हन बन के,
पीछे उनके सैन्य कतार।
टप टप भय से देख बरसती,
रिपु के तन स्वेदों की धार।।
रावण की लंका के जैसे,
बावन गज के सारे वीर।
कितने तो निज तोपें देखे,
गिनते बाकी अपने तीर।।
जलती हर अंतस में ज्वाला,
कितना लेता रक्त उबाल।
जान चुके थे राजपुताना,
अपने दुश्मन की हर चाल।।
नाप रही थी तोला-तोला,
सेना इन सब की औकात।
क्षण भर में मिट जाएंगे या,
युद्ध चलेगा पूरी रात।।
आरी से काटें दुश्मन को,
या फिर ढूँढे केवल शूल।
शक्ति का आभास कराती,
रणभूमी में उड़ती धूल।।
एक सिपाही सौ को मारे,
या फिर काटे शीश हजार।
कितने सैनिक की टुकड़ी हो,
मारो गिनके लाख हजार।।
नाच रही जो रणभूमी में,
कौन बने उसका भरतार।
विपदा सलहज सी मुस्काई,
आतुर थी करने को वार।।
मूंछे ताने सैनिक सारे,
करते देखे शेर हुँकार।
सोच रहे थे डर जाएगी
राजपुताना की तलवार।।
मच्छर जैसे भिन-भिन करते,
गाते-जाते अपना राग।
बीन बजाओ तो कुछ समझें,
राजपुताना के ये नाग।।
सोच रही थी बकरी लेगी,
शेरों से अपना प्रतिशोध।
एक वार से डर जाएगी,
भागेगी जब देखे क्रोध।।
चींटी सपना देख रही थी,
देगी हाथी पैर उखाड़।
कछुये जैसे अब चीते को,
देंगे मीलों आज पछाड़।।
अंगद के पग जैसे जमते,
राजपुताना के सब वीर।
इजरायल में तोप चली जब,
इनके चलते केवल तीर।।
जितनी भी क्षमता है तुझ में,
आज लगाओ अपना जोर।
एक बार तलवार उठी तो,
देख न पाओगे फिर भोर।।
भूखी तोप कई को खाती,
उतनी बढ़ती जाती भूख।
दावानल सी दहक रही भू ,
भय से काँपे सारे रूख।।
राजपुताना के वीरों ने
क्षण में बदली अपनी चाल।
मधुमक्खी के जैसे टूटे
करते दुश्मन को बेहाल।।
काट उपज खलिहान बना सा,
रण का क्षेत्र दिखे इस हाल।
एक तरफ तलवार चली तो,
दूजी ओर बचाती ढाल।।
राजपुताना देख चमकता,
इजरायल में बनके दीप।
अगणित सूरज नतमस्तक थे,
यूँ दुश्मन को देता लीप।।
निश्चित कर लो लक्ष्य अभी भी,
अपनी क्षमता को पहचान।
अंत समय तक शव होंगे या,
प्राणों को मिलता वरदान।।
बोटी-बोटी कर डालेंगे,
बेचेंगे जाकर बाजार।
इतना कौशल लेकर घूमें,
अपने हाथों में हथियार।।
तीव्र सुनामी जैसी गति ले
दौड़ी वीरों की तलवार।
स्पर्श हुए बिन गिरते कट के,
जाने कितने लाख हजार।।
पीस रहे चटनी के जैसे,
सैनिक तोप सभी हथियार।
दानव भी थर्राये पल भर,
ऐसा था भीषण संहार।।
नौ सौ ने थे प्राण गँवाये,
तेरा सौ को कर के कैद।
कितने प्राण पखेरू उड़ते,
देख अचंभित सारे बैद।।
वीरों ने इतिहास रचा पर,
भूल गए उनको सब लोग।
ऐसे ही पापों को धोने,
आता है कोरोना रोग।।
इजरायल नतमस्तक होकर,
लेता है भारत का नाम।
अपने हिय में रखते जीवित,
राजपुताना का वो धाम।।
शत शत वंदन करलो उनका,
जिनके दम पर है अभिमान।
बच्चों का है फर्ज बचाना,
अपने पुरखों का सम्मान।।
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
राजपूत के शौर्य वंश की अमर कीर्ति ये बोलेगी।
जवाब देंहटाएंभारत की बेटी बोलेगी भारत की ही जय बोलेगी।।
बहुत सुंदर चालीसा जिसके माध्यम से भारत ही नहीं भारत के बाहर भरियों विशेषकर राजपूतों के शौर्य का वीर रस में जो वर्णन किया है यह प्रशंसनीय है और इस लेखनी का यश और कीर्ति दसों दिशाओं में फैले हार्दिक शुभकामनाओं सहित अनंत बधाई 💐💐💐
यह रचना आपके आशीर्वाद का ही परिणाम है गुरुदेव 🙏
हटाएंआपको पसंद आया....लेखन सार्थक हुआ। स्नेहाशीष बनाये रखिये 🙏
सादर नमन 🙏
बहुत ही शानदार सृजन इतिहास के पन्नों में दबा पड़ा है धोरों का शोर्य , साधुवाद आप जैसे अन्वेषकों को जो अथाह अथक मेहनत से तथ्य खोज कर उस पर इतना मुग्ध करता काव्य रचते हैं साधुवाद विदुषी जी आपकी कलम हर दिन ऐसे चमत्कार करती जाते।
जवाब देंहटाएंमाँ वाग्देवी सदा सहाय रहे आप काव्य जगत में अपनी अलग पहचान बनाये,सदा ध्रुव तारे सी रोशन रहें ।
सस्नेह।
वीरों का शोर्य पढ़े कृपया🙏
हटाएंबहुत बहुत आभार सखी प्रज्ञा जी 🙏
हटाएंआपका उत्साह वर्धन सदैव ही हमारा मार्गदर्शन करता है।
स्नेहाशीष बनाये रखिये 🙏
हार्दिक आभार श्यामा जी उत्साहवर्धन के लिए 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रिय नीतू। राजपूतों का इतिहास गौरवशाली और जनहिताय रहा है। अद्भुत चालीसा जो सराहना से परे है। हमारे वीर पूर्वजों को कोटि नमन। हार्दिक शुभकामनाएं और प्यार। यशस्वी रहो।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार रेणु दी मनभावन प्रतिक्रिया के लिए 🙏
हटाएंबोटी-बोटी कर डालेंगे,
जवाब देंहटाएंबेचेंगे जाकर बाजार।
इतना कौशल लेकर घूमें,
अपने हाथों में हथियार।।
वाह वाह अति उत्कृष्ट सृजन
कोटि कोटि वंदन आपकी लेखनी को...✍️✍️💐💐🙇🙇🙏🙏🙏
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