आन बसों तुम मोरी नगरिया,
हे घट घट के वासी
कन्हैया मोरे छोड़ के मथुरा-काशी
कान्हा तुम हो प्यार का सागर,
फिर क्यूँ सुनी मोरी गागर,
कौन कसूर भयो रे मोसे,
जो मै रह गई प्यासी,
कन्हैया मोरे छोड़ के मथुरा-काशी
जिन नैनों में कृष्ण बसे हों,
उन नैनों में कौन समाये,
नैना तेरे दरस को तरसे,
पागल मन कैसे समझायें,
एक झलक दिखला दो कन्हैया,
कर दो दूर उदासी,
कन्हैया मोरे छोड़ के मथुरा-काशी
तुम तो हो छलिया बनवारी,
नैन मिलाके सब कुछ हारी,
तुम बैठे मथुरा में जाकर,
मन रोये अब रतिया सारी,
रोते रोते प्राण तजूँगी,
देर ना करना जरासी,
कन्हैया मोरे छोड़ के मथुरा-काशी
सूना मधुबन, सुना पनघट,
आज ना मै छोडूंगी ये हठ,
हर पल तेरी याद सताये,
कान्हा तुम कैसे बिसराये,
तुम हो गोकुल वासी
कन्हैया मोरे छोड़ के मथुरा-काशी
- नीतू ठाकुर
जिन नैनों में कृष्ण बसे हों,
जवाब देंहटाएंउन नैनों में कौन समाये,
नैना तेरे दरस को तरसे,
पागल मन कैसे समझायें,....वाह! सम्पूर्ण समर्पण का शाश्वत सरगम!!!!
Bahut Bahut Abhar,
हटाएंAap ki pratikriya man ko khush kar gai,
Aise hi Ashirwad banaye rakhiye...Naman
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (19-11-2017) को "श्रीमती इन्दिरा गांधी और अमर वीरंगना लक्ष्मीबाई का 192वाँ जन्मदिवस" (चर्चा अंक 2792) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह! सुंदर! अलौकिक प्रेम में समर्पण की भावप्रवण प्रस्तुति. लिखते रहिये. प्रभावी रचना. बधाई एवं शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंआदरणीय धन्यवाद आशीर्वाद बनाये रखें।
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