शनिवार, 17 फ़रवरी 2018

अब नहीं चुभते तेरे शब्दों के तीर ......नीतू ठाकुर

अब नहीं चुभते तेरे शब्दों के तीर... 
जो दिल को चीरकर लहूलुहान कर दे
धज्जियाँ उड़ा दे इज्जत की
स्वाभिमान बेजान कर दे
दफ़न होती सिसकियों का
जीना हराम कर दे
अब नहीं चुभते तेरे शब्दों के तीर.... 
जो वजूद मिटाते थे
मुझे मुझसे ही छीनकर
मेरी नजरों में गिराते थे
घूरते थे मुझको
मेरी औकात दिखाते थे
मेरी लाचारी मेरी बेबसी का
तमाशा बनाते थे
अब नहीं चुभते तेरे शब्दों के तीर... 
जो गिनते थे मेरी रोटी के टुकड़े
मेरे कपड़ों के एहसान और
खिदमत में गुजारी ज़िंदगी के बदले में
दिया तुम्हारा नाम
अब नहीं चुभते तेरे शब्दों के तीर.... 
जो मेरे प्यार और समर्पण को झूठा बनाते थे
खड़ा करते थे मुझे कटघरे में
मुकदमा चलाते थे
रुलाते थे मेरी आत्मा को
गद्दार,बेकार ,गैरजिम्मेदार कहकर
अब नहीं चुभते तेरे शब्दों के तीर.... 
जो ज़िंदगी में खलल मचाते थे
मुझसे मेरा सब कुछ छीन कर
मुझे ही मुजरिम बनाते थे
अब नहीं चुभते तेरे शब्दों के तीर.... 
क्यों की मर चुकी है वो आत्मा
जो तुझ पर अपनी जान कुरबान कर दे
तेरे पैरों की धुल बनकर
ज़िंदगी तेरे नाम कर दे
        - नीतू ठाकुर  

29 टिप्‍पणियां:

  1. व्यथित और एक टूटे हुए मन का वीतराग.... बेहतरीन

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    1. नीतू जी बेहद ही खुबसूरत पंक्तिया लिखी आपने....

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-02-2017) को "कुन्दन सा है रूप" (चर्चा अंक-2884) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. वाह.
    निशब्द.
    एक टूटे हुए दिल के दर्द को बखूबी बयान किया है आपने नीतू जी.बहुत उम्दा सृजन.

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    1. शुक्रिया आप की सुंदर प्रतिक्रिया के लिए

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  4. भावातिरेक में सब कुछ याद आता है उसी व्यथा कथा को बहुत मर्मान्तक शब्द दे दिए आपने नीतू जी | सराहनीय सृजन !!!!!!

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    उत्तर
    1. सुंदर प्रतिक्रिया
      शुक्रिया आप की सुंदर प्रतिक्रिया के लिए

      हटाएं
  5. अब नहीं चुभते तेरे शब्दों के तीर
    क्योंकि मर चुकी है वो आत्मा
    जो तुझ पर अपनी जान कुर्बान कर दे
    तेरे पैरों की धूल बनकर
    जिंदगी तेरे नाम कर दे !

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  6. वेदना,समर्पण और स्वाभिमान का मर्मांतक चित्रण !

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  7. अंतरात्मा को झंकझोरती हुई रचना

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    1. शुक्रिया आप की सुंदर प्रतिक्रिया के लिए

      हटाएं
  8. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (19-02-2018) को "सौतेला व्यवहार" (चर्चा अंक-2885) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  9. उत्तर
    1. आदरणीय बहुत बहुत आभार
      सुंदर प्रतिक्रिया

      हटाएं
  10. वाह!!नीतू ,कितना सुंंदर लिखती हैं आप ।आपकी कलम को मेर नमन ।

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  11. ... कितना दर्द लिख दिया आपने...अब नहीं चुभते शब्दों के तीर...क्रोध की अभिव्यक्ति कविता की गहराई से अवगत करा रहीं है . इतना ही अच्छा लिखते रहे आप यही शुभकामनाएं रहेगी सदा ... धन्यवाद।

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  12. ... कितना दर्द लिख दिया आपने...अब नहीं चुभते शब्दों के तीर...क्रोध की अभिव्यक्ति कविता की गहराई से अवगत करा रहीं है . इतना ही अच्छा लिखते रहे आप यही शुभकामनाएं रहेगी सदा ... धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  13. सच है एक सीमा के बाद दर्द आदत में तब्दील हो जाती है
    बहुत सही

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  14. दर्द जब हद से गुज़र जाए तो विद्रोह हो जाना चाहिए ...
    किसी को इतना दर्द देना ठीक नहीं और न ही इतना सहना ... बाँधना टूट जाना ही बेहतर ...

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  15. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 10/04/2018 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

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  16. जब आपकी सहृदयता को आपकी लाचारी समझाा जाए तो ठीक यही शब्‍द निकलते हैं...आपने इन्‍हें कविता में ढालकर दर्द को रागमय बना दिया नीतू जी...

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