सोमवार, 23 मार्च 2020

आपका आभास नीतू ठाकुर 'विदुषी'

नवगीत 
आपका आभास 
नीतू ठाकुर 'विदुषी'

मापनी~~ 14/14 

फिर पलक झुक कर निहारे
आपका आभास पाकर
गूँजती है मौन वाणी
फिर अधूरा गीत गाकर

1
अंतरे में तुम समाये
गीत की रसधार फूटी
तन बिना मन के मिलन से
इस जगत की रीत टूटी
मोड़ते हैं मुख जहाँ से
हम दुखों पर मुस्कुराकर


2
फूल से चुभने लगे है
शुष्क से क्यों नेत्र मेरे
तैरते हैं आँसुओं में
जब पिघलते स्वप्न तेरे
पूछ लो कैसे बिताये
बिन तुम्हारे वर्ष आकर

3
जुगनुओं की रौशनी में
चाँद का प्रतिबिंब देखा
तन हॄदय उसने जलाया
शीत पढ़ती भाग्य लेखा
रागिनी फिर से सुनाए
बाँसुरी को गुनगुनाकर


4
कुछ अधर को थामते से
चित्र यादों ने उकेरे
श्वास की गति तीव्र देखी
धड़कनों पर हाथ फेरे
इक लहर फिर दौड़ आती
छोड़ जाती तिलमिलाकर

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-03-2020) को    "नव संवत्सर-2077 की बधाई हो"   (चर्चा अंक -3651)     पर भी होगी। 
     -- 
    मित्रों!
    आजकल ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत दस वर्षों से अपने चर्चा धर्म को निभा रहा है।
    आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  2. वाह !बेहतरीन सृजन प्रिय नीतू दी 👌👌

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  3. वाह ...
    बहुत ही लाजवाब छंद हैं ...
    गेयता कमाल है ...

    जवाब देंहटाएं

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