यह रचना सरकार के विरुद्ध नही है पर अन्नदाता से गद्दारी नही कर सकते....
आज स्ट्रॉबेरी उगाओ
ये नई तकनीक आई
आय दुगनी हो सकेगी
बात सेवक ने बताई
दो गुनी क्या चीज है फिर
दस गुनी का ज्ञान भी है
रोपनी है कृषि अफीमी
सौ गुनी का ध्यान भी है
जिद्द पर सरकार बैठी
हो सके यूँ सब भलाई
आज की बेरोजगारी
देश में खुशियाँ मनाती
ये चतुर सरकार देखो
एक मुद्दे पर न आती
चूमती नभ दर विकासी
भाषणों में नित बताई
बोलती सरकार है जब
आज अच्छे दिन तुम्हारे
मानते जो हैं नही ये
देशद्रोही वो हमारे
रीत सत्ता जो चलाती
बात उसने ये सिखाई
धान बाली रो रही है
देख कर अपनी गरीबी
व्यर्थ सारे श्रम हुए हैं
स्ट्रॉबेरी लगती करीबी
रोटियां रूठी हुई हैं
खीर सत्ता ने बनाई
स्वप्न सुंदर बेचते हैं
गोलियाँ मीठी खिलाकर
शेखचिल्ली भी लजाता
इक स्वयं का शिष्य पाकर
शर्म से भारत झुका है
किरकिरी देती दिखाई
चाहतें सरकार की हैं
तुगलकी फरमान जैसे
माननी सबको पड़ेंगी
हो सके ये सत्य कैसे
दूत यम के बन खड़े हैं
इक ध्वजा उसको थमाई
आज आंदोलन मिटाना
चाहती सरकार अपनी
एकता को तोड़ कर यूँ
अब दिखाती धार अपनी
बात समझें नाक की क्यों
सच न देता क्यों सुनाई
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 01 फरवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका 🙏🙏🙏
हटाएंअनूठे बिंबों के साथ एक खूबसूरत नवगीत👌👌👌👏👏👏👏💐💐💐परंतु क्षमा कीजियेगा आदरणीया! मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूँ।🙏🙏सरकार की हर योजना देश हित में ही होती है।ये तथाकथित किसान जो कि किसानों के नाम पर धब्बा हें ,बस उनकी साज़िश है।और किसान को अन्नदाता कहना कहाँ तक उचित होगा?? वो जो अन्न उगाता है, उसका पूरा मूल्य वसूल करता है, कोई मुफ्त में दान नहीं करता,तो दाता कैसा?? वो तो बस अन्न उत्पादक है।
जवाब देंहटाएंये मेरी अपनी सोच है।क्षमा कीजियेगा यदि कुछ अनुचित लगा हो तो🙏🙏
आपने रचना को पसंद किया और अपने बहुमूल्य विचार भी साझा किए। रचना को ध्यान से पढ़ने और विचार व्यक्त करने के लिए आपका हृदयतल से आभार 🙏
हटाएंचंद क्षेत्रीय कृषक भारत के भाग्य विधाता नहीं हो सकतें।अराजक,धमकी से संसदीय सरकारी फैसले नहीं बदला जा सकता। बौद्धिक क्षमता,विशेषज्ञ के मतानुसार कृषि कानून कृषि के हितकर हैं। यह एक और नई व्यवस्था की गई है,पुरानी ज्यों की त्यों है।अन्नदाता बोल कर सर पर बैठाया गया तो,मारने,काटने लाल किला पर ही जा अराजकता फैला बैठे। खुद ही सरकार पैर पर क्यूँ कुल्हाड़ी मारेगा। पुराने कानून है जिसका आलोचना होता था कि कृषक आत्महत्या कर रहे.. और जब नया आया तो भी वही हल्ला। सबके अपनी राजनीति महत्वकांक्षा है इन सब के पीछे। आप सोचिएगा ये यहाँ लिखी क्यों पर क्षमा सहित अप्रत्यक्ष रूप से व्यंग्य वहीं इंगित कर रही।
जवाब देंहटाएंशब्द निरुपित अनुसार सुंदर रचना.. बस विचार से थोड़ा
अलग।
धन्यवाद
आपने अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त किये उनका सहर्ष स्वागत। फैसला जो भी होगा देश के हित में ही होगा। रचना को अपना बहुमूल्य समय देने के लिए हृदयतल से आभार 🙏
हटाएंसिर्फ भविष्य आशंका को लेकर देश की अस्मिता पर हमला करना, सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना कहां की समझदारी है ! आज हर तरफ बेहतरी के लिए प्रयोग हो रहे हैं, मैदानों में चाय का उत्पादन हो रहा है ! केसर की क्यारियों ने कश्मीर की सीमा लांघ ली है ! सेव ने भी पहाड़ों का मोह छोड़ दिया है ! तो इन सब में भी खराबी है क्या ! पूर्वाग्रह त्याग यदि समस्या पर लेखनी चलनई चाहिए
जवाब देंहटाएंआपकी प्रतिक्रिया निश्चित ही विचारणीय है। बहुत बहुत आभार आपका अपना बहुमूल्य समय देने के लिए 🙏
हटाएंउपयोगी सुझाव।
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय 🙏
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