कह मुकरी एक रोचक विधा है। मैंने गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी द्वारा लिखी अनेक कह मुकरियाँ पढ़ी है और उनसे प्रेरित होकर कुछ लिखने का प्रयास किया है। यह प्रयास कैसा लगा ये आप प्रतिक्रिया के माध्यम से बता सकते है ....धन्यवाद ।
जो वो बोले वो मैं सुनती।
कर विश्वास स्वप्न भी बुनती।
उसके कारण है सब सुख दुख।
हे सखि साजन? ना सखि ये मुख।।
© नीतू ठाकुर 'विदुषी'
उसको मैं पकवान खिलाती।
जो वो चाहे वो मैं गाती।
पर गाना ना सीखे चंठ।
हे सखि साजन ? ना सखि कंठ।।
© नीतू ठाकुर 'विदुषी'
उसे देख मन बहका जाये।
मन अधरों से छू के गाये।
वो आमंत्रण देता खुल्ला।
हे सखि साजन? ना रसगुल्ला।।
© नीतू ठाकुर 'विदुषी'
उसने असली रूप दिखाया।
लेकिन कुछ भी बोल न पाया।
दूर रखूँ उससे हर आँच।
हे सखि साजन? ना सखि काँच।।
© नीतू ठाकुर 'विदुषी'
उसका पारा पल-पल चढ़ता।
मौन पीर को मन ये पढ़ता।
मुश्किल उसकी करना जाँच।
क्या प्रिय सजनी ? ना वो आँच।।
© नीतू ठाकुर 'विदुषी'
वर्षों मौन रहा वो झूठा।
रक्तिम मुख से लगता रूठा।
त्याग नियंत्रण बोले धावा।
हे सखि साजन ? ना सखि लावा।।
© नीतू ठाकुर 'विदुषी'
जीवन उसका एक पहेली।
बिना म्यान तलवार अकेली।
बुझी नही पर उसकी तृष्णा।
हे सखि सौतन? ना सखि कृष्णा।
© नीतू ठाकुर 'विदुषी'
अपने तन को खुद कब धोये।
जितना धोऊँ उतना रोये।
बिन लिपटे वो कब है सोती।
हे सखि सौतन? ना सखि धोती।।
©नीतू ठाकुर 'विदुषी'
उसे चुना है मैंने मन से।
लिपटा रहता है वो तन से।
रंग दिखा कब उसका उड़ता।
हे सखि साजन? ना सखि कुड़ता।।
©नीतू ठाकुर 'विदुषी'
रंगबिरंगी उसकी काया।
जिसने देखा उसको भाया।
दान करे जैसे वो कर्ण।
हे सखि साजन? ना सखि पर्ण।।
©नीतू ठाकुर 'विदुषी'
क्रोधित होकर मुझको काटे।
उसकी संगत में हैं घाटे।
दिखता वो डामर का छींटा।
हे सखि साजन? ना सखि चींटा।
©नीतू ठाकुर 'विदुषी'
चलती मेरे पीछे आगे।
जब मन चाहे छूकर भागे।
उसके बिन कब हीले पात।
हे सखि सौतन? ना सखि वात।।
©नीतू ठाकुर 'विदुषी'
देख उसे चुनरी लहराये।
मुझको बाहों में भर जाये।
चौबीस घण्टे करता बात
हे सखि साजन? ना सखि प्रवात।।
© नीतू ठाकुर 'विदुषी'
उसकी लगे सुगंधित आहट।
तन मन में भर दे गरमाहट।
उसकी खातिर आई गाय।
हे सखि सौतन? ना सखि चाय।।
© नीतू ठाकुर 'विदुषी'
उसका लोहा सबने माना
उसका हर गुण है जग जाना
सिक्कों का बन बैठा बप्पा
हे सखि साजन ? ना सखि ठप्पा
© नीतू ठाकुर 'विदुषी'
पीत वर्ण है उसकी काया।
सुंदर चिकना तन भी पाया।
भीड़ मध्य वो रहे अकेला।
हे सखि साजन? ना सखि केला।।
© नीतू ठाकुर 'विदुषी'
दलबल संग पधारे घर से।
देखूँ अँखियाँ मीचें डर से।
टपक पड़े देखे लंगूर।
हे सखि साजन? ना अंगूर।।
© नीतू ठाकुर 'विदुषी'
घर से उसका नाता गहरा।
दुश्मन देख द्वार पर ठहरा।
रक्षक बन कर उभरा आला।
हे सखि साजन? ना सखि ताला।।
© नीतू ठाकुर 'विदुषी'
पल-पल करता है नौटंकी।
हाथ कभी ले झाड़ू, बंकी।
इन कर्मों ने इज्जत खो दी।
क्या सखि साजन! ना सखि मोदी।।
©नीतू ठाकुर 'विदुषी'

हाथ पकड़कर हाट घुमाता
नित्य नए उपहार है लाता
कभी नही करता मन मैला
हे सखि साजन? ना सखि थैला
© नीतू ठाकुर विदुषी
कपड़े पैसे जेवर मोती
सारी चीजें वही सँजोती
चौबीस घण्टे रहती लेटी
हे सखि सौतन? ना सखि पेटी
© नीतू ठाकुर विदुषी
खड़ी खेत में वो इतराती
चित्त पिया का खूब लुभाती
मिलती वो मुझको नित मंडी
हे सखि सौतन? ना सखि भिंडी
© नीतू ठाकुर विदुषी
लिपट-लिपट कर नेह जताये
बिखरे बालों को सहलाये
पोंछे मेरी भीगी अँखिया
हे सखि साजन? ना सखि तकिया
© नीतू ठाकुर विदुषी
मेरे घर में है घुस आती
फुदक-फुदक कर नाच दिखाती
बनी मुसीबत की वो पुड़िया
हे सखि सौतन? ना सखि चिड़िया
© नीतू ठाकुर विदुषी
श्वेत रंग पे चिकनी काया
बड़े भाग्य से उसको पाया
फूट गया पड़ते एक डंडा
हे सखि साजन? ना सखि अंडा
© नीतू ठाकुर विदुषी
गोरे मुख पर आँखे काली
सम्मोहित सासू कर डाली
मन भाती है वो कम थोड़ी
हे सखि सौतन? ना सखि घोड़ी
© नीतू ठाकुर विदुषी
मेरे घर पर हुकुम चलाती
साजन को भी खूब नचाती
सौतन बन कर है वो आई
हे सखि डायन? ना महँगाई
© नीतू ठाकुर विदुषी
कद से छोटा तन का भारी
दूध दही जल सब बलिहारी
मुख दमके पर मन का खोटा
हे सखि साजन? ना सखि लोटा
© नीतू ठाकुर विदुषी
देख मुझे बाहें फैलाये
संग चले तो वो सुख पाए
भाये मन को शीतल झिड़की
हे सखि साजन? ना सखि खिड़की
© नीतू ठाकुर विदुषी
दिन में मिलने से है डरता
प्रतिदिन रूप अनोखे धरता
दाग लिए मुखड़े पर गंदा
हे सखि साजन? ना सखि चंदा
© नीतू ठाकुर विदुषी


मैं ऊपर वो मेरे नीचे।
अपने बल से मुझको खींचे।
उसे रोकले किसका बूता।
हे सखि साजन? ना सखि जूता।।
मुझको अपने संग भागये।
मैं ठहरूँ तो वो रुक जाये।
परछाई बन रहती हरपल।
हे सखि सौतन? ना सखि चप्पल।।
मेरे अंतर मन को बाचे।
हाथ पकड़कर मेरा नाचे।
साथ चले वो जैसे बन्ना।
हे सखि साजन? ना सखि पन्ना।।
हवा देख वो रंग दिखाती।
राख करे सब कुछ अभिघाती।
उसे मिटाती जिसने पाला।
हे सखि सौतन? ना सखि ज्वाला।।
फटफटिया से बोल अनोखे।
रंग दिखाये उसने चोखे।
आँखों में चुभती बन सुआ।
हे सखि सौतन? ना सखि बुआ।।
खेल रहा जब ताश बिचारा।
श्रेष्ठ वही था सब को प्यारा।
वो राजा बन बैठा पक्का।
हे सखि साजन ? ना सखि इक्का।।
फौलादी तन उसने पाया।
रण में उत्तम शौर्य दिखाया।
उससे बैरी माने हार।
हे सखि साजन? ना तलवार।।
काम बहुत वो मेरे आती।
फिर भी हरपल मुझे डराती।
बैरी पर पड़ती है भारी।
हे सखि सासू? नही कटारी।।
साक्षी है इतिहास पुराना।
बैरी ने भी लोहा माना।
शूरों के सँग उसका पाला।
हे सखि साजन? ना सखि भाला।।
साँझ सवेरे मुझे बुलाये।
अपनी धुन पर खूब नचाये।
मुझपर समझे वो अपना हक।
हे सखि साजन? ना सखि ढोलक।।
मनभावन धुन छेड़े प्यारी।
उसकी सूरत सबसे न्यारी।
उसके नाम लिखूँ हर साँझ।
हे सखि साजन? ना सखि झांझ।।
उसमें मेरे प्राण समाये।
फिर भी हाथ नही वो आये।
उसके कारण सबसे झगड़ी।
है सखि साजन? ना सखि तगड़ी।।
छोटा पर ताकत भरपूर।
घोड़े को दौड़ाये दूर।
उसके बिन कब पर्व मना।
हे सखि साजन? ना सखि चना।।
मुझको उसका रंग लुभाता।
लेकिन भाव बहुत है खाता।
उसे सहेजूं पूरे साल।
हे सखि साजन? ना सखि दाल।।
उसने मेरा रूप सजाया।
रौब बढ़ा जब उसको पाया।
उसको तन छूने की छूट।
हे सखि साजन? ना सखि सूट।।
लिपट पैर से वो है चलता।
उसका ना होना भी खलता।
उसे छुये तो कर दूँ खून।
हे सखि साजन? ना पतलून।।
उसके जैसी कौन रसीली।
सुंदर काया पीली-पीली।
उसको छूकर आँखे मूंदी।
हे सखि सौतन? ना सखि बूंदी।।
भीग गया तो घर ना आया।
घर भर ने कोहराम मचाया।
बोलो उस बिन कौन सहारा।
हे सखि साजन? ना सखि चारा।
रोज गले से उसे लगाती।
अपने हाथों से नहलाती।
उसके मन आया कब मैल।
हे सखि साजन? ना सखि बैल।।
जब भी मैं खिड़की से झाकूँ।
सबको भूल उसी को ताकूँ।
उसको छू पाती मैं काश।
हे सखि साजन? ना आकाश।।
उसको मिलने को मन तरसे।
दूर बहुत वो मेरे घर से।
तकता होगा मेरी बाट।
हे सखि साजन? ना सखि घाट।।
कितना सुंदर वो है गाता।
छुपछुप कर मिलने है आता।
उसको कैसे कह दूँ घातक।
हे सखि साजन? ना सखि चातक।।
विषधर जैसा दिखे हठीला।
पानी छूकर होता गीला।
उसके गुण को किसने ताड़ा।
हे सखि साजन? ना सखि नाडा।।
विस्मित करता रूप बदलकर।
मीलों यात्रा करता चलकर।
उसपर अटका मेरा मन।
हे सखि साजन? ना सखि घन।।
हाथों को वो जब छू जाती।
एक सुरीला राग सुनाती।
उसकी यादें मन में रख ली।
हे प्रिय सजनी? ना प्रिय डफली।।
बैरन बनकर रही हटेली।
लगती जैसे एक पहेली।
उसे अकारण अड़ते देखा।
हे सखि सौतन? ना सखि रेखा।।
दुनिया उसके कीरत गाती।
किंतु पकड़ में कब है आती।
वो निष्ठुर कब सुनती विनती।
हे सखि सासू? ना सखि गिनती।।
वर्षों से है साथ हमारा।
उसके बिन ना दूजा चारा।
राग सुनाती वो बन बंसी।
हे सखि साजन? ना सखि संसी।।
मेरे घर में उसका डेरा।
आँगन तक उसने है घेरा।
याद दिलाती वो तो मैया।
हे सखि सासू? नही ततैया
मेरे घर में उसका डेरा।
आँगन तक उसने है घेरा।
हर घटना की वो है साखी।
हे सखि सौतन? ना सखि माखी।।
वो कामों में हाथ बँटाती।
फिर भी किसके मन है भाती।
उसे समझते जैसे फक्कड़।
हे सखि सौतन? ना सखि पक्कड़।।
वो तो है कितनी बड़बोली।
रंग दिखे ज्यों खेली होली।
सदा बँधी रहती वो सकरी।
हे सखि सौतन? ना सखि बकरी।।
वो मेरा पीछा कब छोड़े।
छू कर जैसे तन को तोडे।
मैं तो चाहूँ उसको खोना।
हे सखि साजन? ना सखि टोना।।
गणित बहुत है उसका पक्का।
गुण से कर देती भौचक्का।
मोल भाव करती वो बुला।
हे सखि सासू? ना सखि तुला।।
आलस ने उसको है घेरा।
उसे काम में किसने पेरा।
वो तो तोड़े रोज पलंग।
हे सखि साजन ? ना सखि अंग।।
उसको देखूँ तो सुख पाऊँ।
उसका सुंदर चित्र बनाऊं।
वो है अब हर पल तैयार।
हे सखि साजन? ना मीनार।।
वो तो है मनभावन सपना।
एक दिन होना उसको अपना।
हर क्षण सोचे उसको ही मन।
हे सखि साजन? ना सखि सदन।।
नीरवता उसको है भाती।
खुशियाँ उसको कब हर्षाती।
उसके भेद बताती गोह।
हे सखि साजन? ना सखी खोह।
उसके पूरे तन में छेद।
कौन बताये उसका भेद।
कठिन कार्य है उसका सारा।
हे सखि बोरा? ना सखि झारा।।
हर घर उनका राज पसार।
उनके बिन कैसा व्यवहार।
टकराते वो जैसे सांड।
हे सखि सिक्के? ना सखि भांड।।
चौबीस घण्टे पग दबाये।
ना कुछ माँगे ना कुछ पाये।
बन बैठा वो मेरा पिछुआ।
हे सखि साजन? ना सखि बिछुआ।।
धीरे धीरे चढ़ती जाये।
उसका जादू रंग दिखाये।
बिकवा दे वो बंगला गाड़ी।
हे सखि सौतन? ना सखि ताड़ी।।
हर पंगत में वो है जँचता।
वो ना हो कोहराम है मचता।
उसके भाग्य लिखा इक कोना।
हे सखि साजन? ना सखि दोना।
हँसकर बोझ उठाते देखा।
कहती यही भाग्य का लेखा।
किंतु वो पग एक छुपाई।
हे सखि सासू? ना तिपाई।।
जितना दो उतना वो खाये।
दिया हुआ पूरा लौटाये।
चमकाता है उसको चंकी।
हे सखि साजन? ना सखि टंकी।।
दिखने में है गोरी चिट्टी।
गुम कर दे वो सिट्टी पिट्टी।
बड़े भाग्य से वो है पाई।
हे सखि सासू? नही मलाई।।
छोटी सी पर मन से शीतल।
गुण में हारे सोना पीतल।
अपनाती उसको हर बेटी।
हे सखि ननदी? ना सखि मेटी।।
हर वस्तु को बहुत सहेजे।
एक स्थान से दूजे भेजे।
नही कभी उसको है रोका।
हे सखि साजन? ना सखि खोका।।
सबसे मिलजुलकर वो रहती।
पूछो तब वो मन की कहती।
जुड़ते ही वो होती बड़ी।
हे सखि साजन? ना सखि कड़ी।।
दिखे आम पर गुण की खान।
प्रामाणिकता है पहचान।
तन मन पर उसका पूरा हक।
हे सखि साजन? ना सखि नमक।।
उसके बिन जग सारा सूना।
हर्षित करता उसका छूना।
कौन खिलता उसको पोय।
हे सखि साजन? ना सखि तोय।।
उसकी आहट से उठ जाती।
जो वो माँगे वही खिलाती।
फिर भी कब वो सुनता पाजी।
हे सखि साजन? ना सखि वाजी।।
उसका क्रोध बड़ा अभिघाती।
आ धमके बिन भेजे पाती।
जब आती तब करती घपला।
हे सखि साजन? ना सखि चपला।।
सबकी अंतिम आस वही है।
कुछ भी उसे असाध्य नही है।
उसको है खुद पर विश्वास।
हे सखि साजन? नही प्रयास।।
बिना आग के एक धुआँ सा।
भटक रहा है देख कुँहासा।
उसका बल कब होता है कम।
हे सखि साजन? ना सखि हिय भ्रम।
संग रहे फिर भी खोया सा।
हर क्षण दिखता वो सोया सा।
किसे पता है उसका अंत।
हे सखि पागल? ना सखि संत।।
बूझ सके तो बूझ पहेली।
बत्तीस जन के बीच अकेली।
उसके बल पर सुख दुख नाचा।
हे सखि किस्मत? ना सखि वाचा।।
चार पहर का उसका फेरा।
पलक झपे तो करे अँधेरा।
चंदा तारे उसके दास।
हे सखि धरती? नही उजास।।
सारा जग करता उपहास।
वो रहती है सबके पास।
पढ़े लिखे सँग वो है ब्याही।
हे सखि ऐनक? ना सखि स्याही।
ना वो मारे ना दे गाली।
फिर भी मन की लगती काली।
वही डराती बनकर सौत।
हे सखि डायन? ना सखि मौत।।
लिखता है वो नित्य कहानी।
दुनिया उसकी हुई दिवानी।
वो दिखलाता सबको हद।
हे सखि साजन? ना सखि पद।।
तंबूरा सा वो है कसता।
बिना दांत के दिखता हँसता।
उसको पाकर हुई छुहारा।
हे सखि साजन? ना गुब्बारा।।
उमर बहत्तर सीना छत्तीस।
मुख में दाँत नही हैं बत्तीस।
कहता मुझे उठा लो गोदी।
हे सखि साजन? ना सखि मोदी।।
उस से सज्जन रहते दूर।
इज्जत करता चकनाचूर।
उसने बंद किए व्यापार।
हे सखि साजन? नही उधार।।
किंचित भाव नही वो खाता।
सस्ते का भी मोल बढ़ाता।
लोटा आँगन में वो खोटा।
हे सखि साजन? ना सखि गोटा।।
झूठों का वो है सरताज।
फिर भी सब पर करता राज।
सबको कहता है वो चालू।
हे सखि साजन? ना सखि लालू।।
दिनभर है वो मुझे पकाती।
कोई बात समझ कब आती।
सारी बातें करती वो छू।
हे सखि सासू? ना सखि वो तू।।
मूढ़ों की बस्ती से आयी।
दुर्बल भोजन कभी न पायी।
मुख जब खोले तो आये बू।
हे सखि सासू? ना सखि बस तू।
डोरी पकड़े बहुत नचाये।
आना जाना उसे न भाये।
उसके रहते भी घर लूटा।
हे सखि साजन? ना सखि खूँटा।।
पूजा में निश्चित आता है।
ना चाहूँ पर छू जाता है।
वही सँभाले है पूरा घर।
हे सखि साजन? ना सखि गोबर।।
खुद भी जलता मुझे जलाता।
निस दिन मेरे घर है आता।
किंतु नही वो करता तर्क।
हे सखि साजन? ना सखि अर्क।।
वो मिल जाए खुश हो जाऊँ।
जीवन भर उसका गुण गाऊँ।
उसके रहते कैसी कमी।
हे सखि साजन? ना सखि अमी।।
वो मेरे तन का रखवाला।
मंत्र मोहिनी उसने डाला।
पूरी करता वो सारे हट।
हे सखि साजन? ना सखि ये पट।।
जर्जर तन पर मन रंगीला।
दाँत आँत के बिना सजीला।
शब्द उकेरें उसकी ये छवि।
हे सखि साजन? ना सखि ये कवि।।
सपनों की दुनिया में खोये।
सुख दुख शब्दों से वो बोये।
जुगनू को बनवा दें वो रवि।
हे सखि नेता? ना सखि ये कवि
हाथों में वो जब भी आया।
सदा उसे मुरझाया पाया।
छोड़ दिया फिर उसका ख्वाब।
हे सखि साजन? न सखि गुलाब।।
मेरे मन की है वो कहती।
हर पल मेरे संग ही रहती।
किंतु नही वो मेरी भविता।
हे सखि सखियाँ? ना सखि कविता।।
उससे कितना नेह लगाया।
बदले में बस छल ही पाया।
वो पाषाणी सा है मित्र।
हे सखि साजन? ना सखि चित्र।।
गली गली के मारे फेरे।
लात पड़े तो मुझको टेरे।
बने क्रोध का वो ही भाजन।
हे सखि कुत्ता? ना सखि साजन।।
ऊँचे दामों का है राजा।
गीत पीर का रोके बाजा।
उसको चखें करोड़ी चंद।
हे सखि केसर? ना गुलकंद।।
ना होकर भी है वो होता।
बस मेरी यादों में खोता।
उसकी सोचूँ बढ़ती श्वास।
हे सखि साजन? ना रनवास।।
उनके बिन है कौन सहारा।
हर दुविधा से मुझे उबारा।
स्नेहाशीष उन्हीं का मुझपर।
हे सखि ईश्वर? ना सखि गुरुवर।।
नीतू ठाकुर 'विदुषी'
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