बुधवार, 15 नवंबर 2017

मायके में बिटिया रानी...नीतू ठाकुर


पलकों को आँचल से पोछा,
चेहरे पर मुस्कान सजाई,
जब देखी आंगन में मैंने,
अपने बाबुल की परछाई,
बार बार घड़ी को देखे,
जैसे समय को नाप रहे थे,
पल में अन्दर पल में बहार,
रस्ते को ही झाँक रहे थे,
देख मुझे सुध-बुध बिसराये,
घर के अन्दर ऐसे भागे,
जैसे उन बूढ़े पैरों में,
नये नवेले चक्के लागे,
भाग के आई मैया मेरी,
हाथों में एक थाल सजाये,
आँखों में ख़ुशी के आँसू,
दिल में कई अरमान बसाये,
चारों तरफ ख़ुशी का आलम,
कलियों पर मुस्कान सी छाई,
जैसे पूछ रहा था आंगन , 
बिटिया बरसों बाद तू आई,
कितना दे दें कितना कर दें,
दामन को खुशियों से भर दें,
मेरा सुख-दुःख बाँट रहे थे,
एक दूजे को डांट रहे थे,  
एक बूँद भी आ ना पाये,
उसकी आँखों से अब पानी,
बरसों बाद लौट कर आई,
है जब मेरी बिटिया रानी,
उनके मन में ऐसे बसी थी,
जैसे तन में प्राण समाये,
फिर क्यों वहाँ ना पाये इज्जत,
जिनकी खातिर उम्र बिताये ? 
              -नीतू ठाकुर        
  
          
        

13 टिप्‍पणियां:

  1. वाह !!सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति ।

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    1. बहुत बहुत आभार,
      आप की प्रतिक्रिया मन खुश कर गई,
      शत शत नमन बहुत

      हटाएं
  2. बहुत सुन्दर दिल को सहलाने वाली रचना!बधाई नीतूजी!!!

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार,
      बहुत सुन्दर प्रतिक्रिया,
      शत शत नमन

      हटाएं
  3. जी,नमस्ते।
    आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 17 नवम्बर 2017 को साझा की गई है..................http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. Bitiya aur bahen jab bhi apne aagan aayein anayas hi ese bhavpoorn ho man udvelit ho uthta hai behad khoobsurat prastuti likhti rahein

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार,
      बहुत सुन्दर प्रतिक्रिया,
      शत शत नमन

      हटाएं
  5. मेरा सुख-दुःख बाँट रहे थे,
    एक दूजे को डांट रहे थे,
    एक बूँद भी आ ना पाये,
    उसकी आँखों से अब पानी,
    बरसों बाद लौट कर आई,
    है जब मेरी बिटिया रानी।।

    बहुत मनभावन। दिल को छूने वाली रचना। wahhhh

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  6. बहुत ही सुन्दर, भावपूर्ण, हृदयस्पर्शी रचना
    वाह!!!!!

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  7. सही कहा नीतू जी मायका तो मायका ही है हम लोगों मे एक कहावत है।

    सासरिये रा धोरा म्हाने चढता लागे दोरा
    पीवरिये रा धोरा म्हाने चढता लागे सोरा।

    याने ससुराल की चढाई चढ़ नी तकलीफ देती है
    और पीहर की चढाई आराम से खुशी खुशी चढ जाती हूं बिना तकलीफ।

    भाई को भेज बुलावो ऐ माई
    सुरंग रूत सावन की आई।
    तो ऐसा है पीहर का चाव हमारे मारवाड़ी मे तो पीहर महिमा के इतने गीत हैं कि हर मौके पर गा सको।
    शुभ दिवस।

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