मुकद्दर में भरें हैं ग़म, तो दुनिया से छुपाऊँ क्यों ?
मुझे मंजूर है किस्मत, तभी तो अश्क़ ढाऊँ मै
तेरी यादों के तकिये को, सिरहाने पे सजाऊँ मै,
उन्हीं के दम पे हूँ जिंदा, उन्हें क्यों भूल जाऊँ मै ?
बड़ी बेदर्द है दुनिया, मुझे जीने नहीं देगी,
तेरे चाहत की जंजीरें, जहर पीने नहीं देंगी
मै जीते जी मरी हूँ पर , तू मरकर दिल में जिंदा है,
जुदा जिसने किया था वो, खुदा खुद पर शर्मिंदा है
तेरी यादों को इस दिल ने, लहू के संग मिलाया है ,
मिटा कर अपनी हस्ती को, खुदा तुमको बनाया है
- नीतू ठाकुर
बेहतरीन विरह रचना-- प्रिय नीतू जी --खासकर आखिरी शेर तो बहुत ही मर्मान्तक है चंद पंक्तिया मेरी और से ----
जवाब देंहटाएंखुदा से जोड़ने नाता ---
शायद इस दिल में आई थी ,
तुम्हारी याद ही थी -
जो खुदा तक ले गयी मुझको !!!!!मेरी अनंत शुभकामनाएं --
आदरणीया बहुत बहुत आभार
हटाएंआप की प्रतिक्रिया हमेशा ही मेरा उत्साह बढाती है
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआदरणीय बहुत बहुत आभार
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (31-01-2018) को "रचना ऐसा गीत" (चर्चा अंक-2865) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
तकदीर का फसाना किसको सुनाऐं जाकर।
जवाब देंहटाएंहृदय छूती विरह रचना।
बहुत सुंदर।
आदरणीया बहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत सुंदर प्रतिक्रिया
बहुत खूब. बधाई.
जवाब देंहटाएंआदरणीया बहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत सुन्दर रचना ! कम शब्द, विस्तारित करती भावना
जवाब देंहटाएंप्रेम के आंतरिक सच को जब स्वीकार किया जाता है तो इस तरह की बैचेनियाँ पनपती हैं
जवाब देंहटाएंप्रेम और जीवन की वास्तविक पीड़ा को उजागर करती बहुत प्रभावी रचना
बधाई
बहुत सुंदर प्रतिक्रिया आदरणीय..धन्यवाद आशीर्वाद बनाये रखें।
हटाएंबहुत सुंदर रचना प्रिय नीतू...हृदय के दर्द भरे कोमल भावों
जवाब देंहटाएंको बहुत सुंधर शब्द दिये है आपने।
बहुत बहुत आभार सखी सुंदर प्रतिक्रिया।
हटाएंबहुत ख़ूब ...
जवाब देंहटाएंप्रेम का आवेग शब्द स्वतः बाँध लेता है ...