एहसास कभी शब्दों का मोहताज नहीं होता 
ये दुनिया कायम नहीं होती अगर एहसास नहीं होता 
एहसास बना एक गूढ़ प्रश्न कितना उसको सुलझाएं 
हर पल होता मौजूद मगर वो कभी नजर न आये 
एहसासों का भंवर जाल ऐसे मन को उलझाए 
हम  लाख निकलना चाहें पर हम कभी निकल न पाएं  
एहसास नही बंधता न भाषा न धर्म से 
बनते बिगड़ते रिश्ते अपने अपने कर्म से 
एहसास बयां कर पाएं वो शब्द कहाँ से लाऊँ    
काश  मौन अंतर मन को मै कभी जुबाँ दे पाऊँ   
                  - नीतू  ठाकुर

 
 
 
 
 
वाह!!नीतू जी ,बहुत खूबसूरत लिखा आपने ..।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंप्रिय नीतू जी -- बहुत सुंदर बात लिखी आपने भावनाओं की कोई जुबान , धर्म या मूर्त नहीं होती | इन्हें शब्दों में व्यक्त करना नामुमकिन है | मनभावन रचना -- सस्नेह --------|
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंआप की प्रतिक्रिया देखकर मन प्रसन्नता से भर गया
एहसास बयां कर पाए वो शब्द कहाँ से लाऊँ
जवाब देंहटाएंकाश मौन अंतर्मन को मैं कभी जुबाँ दे पाऊँ.... अत्युत्तम
बेहतरीन भाव. वाह नीतू जी. 👏 👏 👏
बहुत बहुत आभार
हटाएंआप की प्रतिक्रिया और अच्छा लिखने की प्रेरणा देती है
प्रिय नीतू जी,कितना सच लिखा है आपने ... भावनाओं को शब्द देकर भी इनका पूरा चित्रण करना बहुत मुश्किल है । बहुत सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंसादर ।
बहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत सुन्दर प्रतिक्रिया
एहसास भी एक बहती जलधार है
जवाब देंहटाएंएहसास पर एहसास से सजी सुंदर रचना
धारा प्रवाह लिये ।
बहुत बहुत आभार सखी।
हटाएंकविता का मर्म बहुत अच्छे से समझती है आप।
बहुत बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंमूक एहसास ज्यादा असरदार. सुंदर प्रस्तुति .
हटाएंजी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना .
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत सुंदर नीतू जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार सखी।
हटाएंबहुत खूबसूरती से एहसासों की गुत्थी सुलझाने की कोशिश!बेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंकविता का मर्म बहुत अच्छे से समझती है आप।
बहुत सुन्दर प्रतिक्रिया
लाजवाब अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
बहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत सुन्दर प्रतिक्रिया