रविवार, 29 मार्च 2020

पीर मौन : नीतू ठाकुर 'विदुषी'


नवगीत
पीर मौन
नीतू ठाकुर 'विदुषी'

मापनी ~ 16/16

दीवारों के आज अश्रु को
शुष्क धरा ने बहते देखा।
चीख दरारों से भी निकली।
पीर मौन की लांघे रेखा।।
1
इंद्रधनुष बेरंग गगन में,
काले बादल नभ में छाए।
बूंद बूंद को तरसे पनघट,
प्राण धरा में कई समाए।
हरसिंगार गिरे डाली से,
 लगे धरा पर धूल सरेखा।।

2
अमलतास गुलमोहर रूठे,
नोंक कंटकों के हैं टूटे।
कंकड़ पत्थर द्रवित हॄदय ले,
रुष्ट तृणों के अश्रु फूटते
आज प्रकृति भी अँखिया मीचे
बाच रही किस्मत का लेखा।

3
पिया बिना हर भेंट अधूरी,
योजन सम पल भर की दूरी।
चातक ढूंढ रहा स्वाती को,
आये तो तृष्णा हो पूरी।
जली विरह की दग्ध अग्नि जब
होता अंतस राख अदेखा।

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर नवगीत������ नव्यता ग्रहण किये हुए ������ बिम्ब के माध्यम से कथन को सुदृढ़ बनाया है आपने बधाई शुभकामनाएं������ लेखनी निरन्तरता प्राप्त करे और उत्तम नवगीत लिखते रहो ������

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 31 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. दीवारों के आज अश्रु को
    शुष्क धरा ने बहते देखा।
    चीख दरारों से भी निकली।
    पीर मौन की लांघे रेखा।।

    बहुत ही मर्मस्पर्शी

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  5. वाह!!!!
    बहुत ही लाजवाब नवगीत।

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  6. वाह !! बहुत खूब ,सादर नमन आपको

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