गुरुवार, 18 मार्च 2021

स्वप्न की पगडंडियों पर...नीतू ठाकुर 'विदुषी'


 शुष्क से कुछ पुष्प व्याकुल

पुस्तिका से झाँक रोये

स्वप्न की पगडंडियों पर

अनकहे हर भाव खोये


बीहड़ों से इस हॄदय में

हर्ष कब करता बसेरा

स्वप्न की नगरी अनोखी

जी रही जो बिन सवेरा

कंटकों के बाग निष्ठुर

नेह के कब बीज बोये


शब्द लिख लिख कर मिटाती

लिख न पाए एक पाती

लेखनी की धार टूटी

व्यंजना के गीत गाती

देहरी करती करती प्रतीक्षा

जीर्ण तन का भार ढोये


मृत्यु सा दुख यूँ मनाती

आँसुओं की शाल झीनी

कष्ट की परछाइयों में

राख की खुशबू है भीनी

शोक की शैया सजाकर

बाँसुरी के राग सोये


@नीतू ठाकुर 'विदुषी'

10 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!लाजवाब सृजन,अद्भुत💐💐😊😊🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही मर्म स्पर्शी रचना...

    जवाब देंहटाएं
  3. मन कि व्यथा को खूबसूरत शब्दों में ढाला है ... सुन्दर गीत ...

    किताबों से सूखे फूलों का मिलना न जाने कितने पुराने ज़माने की बात है ... क्या आज भी होता है ऐसा ? तुम्हारे इन भावों ने मन मोह लिया ...

    जवाब देंहटाएं

पहलगाम का किस्सा पूछो : नीतू ठाकुर 'विदुषी'

 पहलगाम का किस्सा पूछो  मेंहदी लगी हथेली से । प्रिय के शव पर अश्रु बहाती  नव परिणीता अकेली से ।। धर्म पूँछकर लज्जित करते  तन पर निर्मम वार क...