गुरुवार, 9 जुलाई 2020

शतकवीर (कुण्डलीयाँ शतकवीर कलम की सुगंध सम्मान 2020)


शून्य से शतक तक (एक संस्मरण)

गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर आदरणीय गुरदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' जी द्वारा "कुण्डलीयाँ शतकवीर कलम की सुगंध सम्मान 2020" पाना मेरे लिए किसी स्वप्नपुर्ति से कम नही। लगभग एक वर्ष पूर्व जब "ये दोहे गूँजते से " साझा संग्रह के निमित्त मेरा गुरुदेव से परिचय हुआ तब यह आभास भी नही था कि मेरी आत्मसुखाय छंदमुक्त लेखनी कभी मात्राभार में बंध कर कुण्डलीयाँ जैसे कठिन छंद पर लिखेगी। पर यह गुरुदेव की असीम कृपा व अथक परिश्रम का परिणाम है कि सिर्फ मै ही नही बल्कि कलम की सुगंध छंदशाला से जुड़ी हर कलम ने भरपूर प्रयास किया और इस आयोजन को एक चुनौती के रूप में स्वीकार कर इसे सफल बनाया।
     
       16 दिसंबर से इस आयोजन का शुभारंभ हुआ पर उससे पूर्व ही "कलम की सुगंध नवांकुर" मंच का निर्माण हुआ यह मंच उन रचनाकारों के लिए था जिन्हें इस विधा के विषय में तनिक भी ज्ञान नही था। इस लिए इस विधा को सिखाने के लिए आदरणीय गुरुदेव ने मात्रा भार से सिखाना प्रारंभ किया। वो समय हम सभी के लिए अविस्मरणीय है क्योंकि एक ओर इस विधा को सीखने की इच्छा और दूसरी ओर अज्ञान वश कुण्डलीयाँ में हो रही त्रुटियां। एक कुण्डलीयाँ न जाने कितनी ही बार संशोधित की जाती फिर भी मन में भय बना रहता था कि सही लिखी  है या नही। उस प्रारंभिक समय ने गुरुदेव की अथाह सहनशक्ति का परिचय दिया। हमारी आँख खुलने से पूर्व ही गुरुदेव रात में लिखी कुण्डलियों की समीक्षा कर देते और कभी कभी देर रात तक समीक्षा देते थे। यह उनके अथक परिश्रम का फल था जो सभी को लिखने के लिए प्रेरित करता रहा। बार बार एक ही त्रुटि करने पर भी गुरुदेव कभी क्रोधित नही हुए बल्कि पुनः समझाने का प्रयास करते थे। उनकी इसी विनम्रता ने सबको उनका ऋणी बना दिया। व्हाट्सएप और फेसबुक के जमाने में सिखाने वाले गुरुओं की कमी नही है फिर भी हम दृढ़ विश्वास से कह सकते हैं कि जितनी लगन और तन्मयता से हमारे गुरुदेव ने सिखाया एक छोटा सा शिशु समझकर इस प्रकार इतना समय और अपनत्व देकर कोई नही सिखाता। प्रतिदिन सैकड़ों रचनाओं की समीक्षा करना सरल कार्य नही है पर गुरुदेव की मेहनत रंग लाई और सभी की कलम चलने लगी।

गुरुदेव ने सिर्फ कुण्डलीयाँ लिखना ही नही सिखाया बल्कि उन्हें समझना भी सिखाया। कुण्डलीयाँ शतकवीर ने मंच को जहाँ कई कुण्डलीयाँकार दिए वहीं दर्जनों समीक्षक भी उपजे। जिस तरह शिल्पकार पत्थर को सुंदर मूर्ति का आकार देता है उसी प्रकार गुरुदेव ने हम सब के भीतर छुपी प्रतिभाओं को उभारा और उन्हें सही दिशा दिखाई। उनके मार्गदर्शन का ही परिणाम है कि कलम की सुगंध एक मंच कम परिवार ज्यादा लगता है।

    वीणापाणी , हंसवाहिनी और सरस्वती तीन समीक्षक समूह की स्थापना की गई और तीनों समूहों के मुख्य समीक्षक आदरणीय बाबुलाल शर्मा 'विज्ञ' जी , इन्द्राणी साहू 'साँची' जी ,और अर्चना पाठक 'निरंतर' जी नियुक्त किये गए। उनकी सक्रियता ने पटल को प्रारंभ से लेकर अंत तक ऊर्जावान बनाये रखा। एक दूसरे को पढ़ना और उनके भाव समझना हमने तभी सीखा। मंच संचालिका आदरणीया अनिता मंदिलवार सपना जी ने सभी को एक सूत्र में बांधे रखा और एक उत्कृष्ठ संचालिका के रूप में स्वयं को प्रमाणित किया। उनका मंच संचालन निःसंदेह प्रेरणादायक रहा है।

     मंझे हुए कलमकार और नवांकुरों का अद्भुत मिश्रण बन गया था कलम की सुगंध छंदशाला मंच। जहाँ एक ओर जानकार अपना अनुभव साझा कर रहे थे वहीं दूसरी ओर नवांकुर गुरुदेव के मार्गदर्शन में नित नए प्रयोग कर रहे थे। सभी एक दूसरे के लिए प्रेरणा बने हुए थे। जब प्रथम कुण्डलीयाँ लिखी तब यह सफर बहुत लंबा लग रहा था और मन में शंका थी कि इतना लंबा समय पार कर भी पाएंगे या लेखनी साथ छोड़ देगी। पर जब कुण्डलीयाँ शतकवीर खत्म हुआ तो मन में एक अद्भुत आनंद के साथ साथ दुःख भी था कि कुछ पीछे छूट रहा है। वह उत्साह व प्रतीक्षा जो संध्या होते ही मन में उभरती और रात्रि में थक कर सो जाती ताकि पुनः नई ऊर्जा लेकर कुछ अच्छा सृजन करे।

     कुसी भी विधा में एक दो रचनाएँ लिख कर कोई जानकार नही हो जाता पर 100 रचनाएँ इस बात की पुष्टि अवश्य करती है कि इस कलम की धार बहुत तेज है। कुण्डलीयाँ कि गणना 10 मुश्किल छंदों में होती है और इसे सीखने से एक साथ 2 और  छंद सीखने का अवसर मिला। जैसा कि आप जानते ही होंगे कि कुण्डलीयाँ- दोहा+रोला से बनता है तो इसका लाभ सभी नवांकुरों को मिला और उनकी कलम अलग अलग छंद लिखने को तत्पर दिखी। छंद का आनंद ही कुछ और है जिसे एक छंदकार ही समझ सकता है। छंदमुक्त लिखकर हम भावाभिव्यक्ति तो कर सकते हैं पर स्वयं की कलम को बांध कर लिखना और उसमें भी अपने भाव व्यक्त कर लेना स्वयं के लिए चुनौती है जिसे जीतने के बाद खुद पर ही गर्व करने का मन होता है।

     यह मेरे जीवन का प्रथम शतकवीर था और मै ईश्वर की  हॄदय से आभारी हूँ  जिन्होंने मुझे कलम की सुगंध परिवार से जोड़ा और इतने गुणीजनों के सानिध्य में सीखने का अवसर प्रदान किया। मै आदरणीय गुरुदेव संजय कौशिक 'विज्ञात' सर की विशेष आभारी हूँ जिनके विश्वास और उत्साहवर्धन ने मेरी रुकी हुई लेखनी को पुनर्जीवित किया। साथ ही उन सभी सखियों का हॄदय से आभार व्यक्त करती हूँ जो शतकवीर के निमित्त मंच से जुड़ी और अभी तक उसी प्रेम भाव व निष्ठा से लिखे जा रही हैं। शून्य से शतक तक की यात्रा में न जाने कितने ही खट्टे मीठे पल हमें दिए जिन्हें याद कर के चेहरे पर मुस्कान बिखर जाती है। शतकवीर ने कभी नवांकुरों को बढ़ते देखा तो कभी बड़ों को बच्चा बन मस्ती करते। वो सभी यादें आजीवन एक अनुपम उपहार बन कर हमारे साथ रहेंगी और हमें आभास करती रहेंगी की हमारी कलम कमजोर नही है।

विशेष:- जानती हूँ कि इस शतक वीर कार्यक्रम से प्रभावित होकर अनेक मंच ऐसे सम्मान देने के लिए प्रेरित अवश्य होंगे और शतकवीर सम्मान देना प्रारंभ भी कर देंगे  परंतु हमारे लिए गर्व की बात है कि शतकवीर सम्मान का प्रारंभ कलम की सुगंध मंच से हुआ। दोहा, रोला , मुक्तक , मनहरण घनाक्षरी के बाद यह कुण्डलीयाँ का पाँचवा शतकवीर सफल आयोजन रहा है और भविष्य में भी ऐसे आयोजन होते रहेंगे यही कामना करते हैं।

नीतू ठाकुर 'विदूषी'
@कुण्डलीयाँ शतकवीर कलम की सुगंध सम्मान 2020

शनिवार, 4 जुलाई 2020

जानें कितनी बली गई ©नीतू ठाकुर 'विदुषी'


नवगीत
जानें कितनी बली गई
नीतू ठाकुर 'विदुषी' 

मापनी
स्थाई पूरक पंक्ति ~~ 16/14 
अन्तरा ~~ 16/16

कहर प्रकृति का फिर जब टूटा
जानें कितनी बली गई
लगे विधाता फिर भी रूठा
खुशियाँ जग से चली गई।।

बंजर धरती किसे पुकारे
सूखी खेतों की हरियाली
भ्रमर हो गए सन्यासी सब
आज कली को तरसे डाली
श्वास श्वास को प्राण तरसते
मृत्यु सभी पल टली गई।।

बांध रहे खुद पैर बेड़ियाँ
जीवन की डोरी थामे
शहनाई के आँसू टपके
हाथ यहाँ फिर अब क्यों थामे
सदियाँ फिसल गई मुट्ठी से
बस आशाएं पली गई।।

कानन से ज्यादा सूनापन
जब ठहर गया इस जीवन में
एक आग से सब कुछ स्वाहा
गूँजे बाकी सी हैं मन में
गर्म तेल था गर्म कढ़ाई
खुशियाँ सारी तली गई।।

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

मंगलवार, 16 जून 2020

आलिंगन.... नीतू ठाकुर 'विदुषी'


नवगीत
आलिंगन
नीतू ठाकुर 'विदुषी'

मापनी~ 16/14

कुंचित काली अलकें महकी
मधुर पर्शमय अभिनंदन
चंद्र प्रभा सी तरुणाई पर
महका तन जैसे चंदन।।

कजरारी अँखियों के सपने
निद्रा से जैसे जागे
दर्पण में श्रृंगार निहारे
चित्त पिया पर ही लागे
पिया मिलन की आस हँसी जब
सोच आगमन आलिंगन।।


दो तन एक प्राण बन बैठे
तीव्र बजे श्वासों की धुन
मौन अधर पर कंपन थिरके
कहे पलक से सपने बुन
राग छेड़ती वीणा तारें
दौड़ रहा नख तक स्पंदन

तप्त धरा पर बूँद टपकती
धरणी देख रही नभ को
सागर से मिलने को व्याकुल
भूल गई सरिता सबको
गीत गा रही आहें मिलकर
अमर प्रेम का ये बंधन

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

शनिवार, 25 अप्रैल 2020

आँसू : नीतू ठाकुर 'विदुषी'



नवगीत
आँसू
नीतू ठाकुर 'विदुषी'

मापनी 16/16

घाव हँसे खुशियों के आँसूं 
एक और की चाहत कहकर।।
प्रीत हृदय में मौन खड़ी थी
भाव पड़े अंतस के ढह कर

1
विरह गीत लिख रही लेखनी
आज डूब कर स्याही में
छोड़ सिसकता भूल गया जो
नेह खोजती राही में
बंद द्वार पाषाणी हिय में
मुक्त हुए कुछ दिन ही रहकर

2
बिखरे रिश्तों  की तुरपन कर
शूल बनी चुभती हर याद
किसे छलोगे प्रेम जाल रच
बचा शेष क्या मेरे बाद
मनमंथन में विष प्राशन कर
साँस हँसी पीड़ा को सहकर

3
सपने आँखों से ओझल हो
पोछ रहे नैनों का कजरा
खनक भूलकर टूटी चूड़ी
पायल रूठी बिखरा गजरा 
बिन श्रृंगार बनी जब जोगन
क्या करती पीड़ा में दहकर

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

शनिवार, 18 अप्रैल 2020

रेल जैसी जिंदगी : नीतू ठाकुर 'विदुषी'

नवगीत
रेल जैसी जिंदगी
नीतू ठाकुर 'विदुषी'

मापनी 14/14

और अन्तस् मौन चीखे
धड़धड़ाहट शोर आगे
रेल जैसी ज़िंदगी ये
पटरियों के संग भागे

1
कल्पनाओं से भरा है
मिथ्य यह संसार देखा
बंधनों में बांधती है
जीवितों को भाग्य रेखा
व्याधियाँ हँसने लगी हैं
सो रहे दिन रात जागे।

उलझनें सुलझा रहा मन
साँस का है खेल सारा
कर्म की तलवार लेकर
प्रज्ञ बदले काल धारा
मोह में लिपटे हुए है
नेह के नाजुक ये धागे

3
ज़िंदगी के रूप का जब
भाव हैं श्रृंगार करते
सुख दुखों के मोतियों को
एक दोना देख भरते
बोलती सी बाँसुरी से
लेखनी स्वर आज त्यागे

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

श्वासों की वीणा : नीतू ठाकुर 'विदुषी'

नवगीत
श्वासों की वीणा
नीतू ठाकुर 'विदुषी'

मापनी~ 16/14

टूटी श्वासों की वीणा ने
सरगम को ऐसे गाया।
झंकृत हिय स्पंदन सा करती
हिरदे गहरा तम छाया।।

1
शरद पूर्णिमा जैसी रातें
देखी अमृत बरसाते
अमर हो गया प्रेम पुष्प पर
देखा जीवित हिय खाते
देकर पाषाणों सी ठोकर
प्रेम कहाँ पर ले आया।।

2
मिश्री सी बातें विष बन कर
अंतस में घुलती जाए
मृग तृष्णा से जाल बिछाकर
जीवन को छलती जाए
वही हॄदय को छोल रहा है
कभी जो मेरे मन भाया।।

3
संग रहा परछाई बन जो
आज वही मुख मोड़ रहा
सूख गई सुख की जलधारा
दुख के बादल ओढ़ रहा
प्रीत रीत को बिसरा कर के
स्तूप विचारों का ढाया।।

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

मधुमास : नीतू ठाकुर 'विदुषी'

नवगीत
मधुमास
नीतू ठाकुर 'विदुषी' 

मापनी 13/11

विरह अग्नि दहके बदन
भटक रही थी श्वास
आज प्राण अटके हुये 
ढूंढे एक उजास

1
कलियों का गुंजन सुना
भ्रमर महकते खूब 
शुष्क नहीं तृण एक फिर
चमक उठी हर दूब
लदी खड़ी वह मंजरी 
दृश्य मनोरम पास

2
नृत्य मोर का देखता
हरा भरा उद्यान
पैर देख आहत हुए
गूँगा कोकिल गान
तितली पंख पसारती
पाकर प्रिय आभास 

3
पुलकित हर्षित है नलिन
करता कीच विलाप
विरह बाण की चोट से
मन करता संताप
*उमड़ घुमड़ छाता रहा*
*हृदय प्रीत मधुमास*

4
मधुमासी बहती हवा
छेड़ रही है राग
चंदन से लिपटे हुये 
पूछ रहे कुछ नाग
शान्त चित्त होता तभी
मिले अगर विश्वास ।।

नीतू ठाकुर 'विदुषी'

पहलगाम का किस्सा पूछो : नीतू ठाकुर 'विदुषी'

 पहलगाम का किस्सा पूछो  मेंहदी लगी हथेली से । प्रिय के शव पर अश्रु बहाती  नव परिणीता अकेली से ।। धर्म पूँछकर लज्जित करते  तन पर निर्मम वार क...